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अर्थराइटिस का सबसे अच्छा इलाज है आधा घंटा पैदल चलना, जानें अन्य उपचार

अर्थराइटिस में जोड़ों में सूजन आ जाती है, जिसके कारण मरीज को चलने-फिरने में परेशानी होने लगती है।
आज के शहरी लोग बिल्कुल गतिहीन हो गए हैं, जिसका बुरा असर उनके मांस और हड्डियों की ताकत पर पड़ता है।
आज अर्थराइटिस (खासतौर पर घुटनों का अर्थराइटिस) महामारी का रूप ले रहा है। उम्र के साथ होने वाला अर्थराइटिस ऑस्टियोअर्थराइटिस कहलाता है।
भारत में ऑस्टियोअर्थराइटिस आमतौर पर 55-60 की उम्र में होता है, लेकिन आज कम उम्र में भी लोग अर्थराइटिस और अपंगता का शिकार बन रहे हैं।

मेरठ स्थित ISH KRIPA CLINIC के डॉक्टर शरद जैन का कहना है कि अक्सर लोग ऑस्टियोपोरोसिस और ऑस्टियोअर्थराइटिस को एक ही समझ लेते हैं।
ऑस्टियोअर्थराइटिस में जोड़ों में डीजनरेशन होने लगता है, वहीं ऑस्टियोपोरोसस में हड्डियों में मांस कम होने लगता है और हड्डियां टूटने या फ्रैक्च र होने की संभावना बढ़ जाती है।
ऑस्टियोपोरोसिस को मूक रोग कहा जा सकता है क्योंकि अक्सर सालों तक मरीज को इसका पता ही नहीं चलता, जब हड्डियां टूटने लगती हैं तब इस बीमारी का पता चल पाता है।
ऑस्टियोपोरोसिस में मरीज को दर्द नहीं होता, लेकिन दर्द तभी होता है जब फ्रैक्चर हो जाता है।



डॉ. जैन ने कहा कि अर्थराइटिस का सबसे आम प्रकार है ऑस्टियोअर्थराइटिस : इसका असर जोड़ों, विशेष रूप से कूल्हे, घुटने, गर्दन, पीठ के नीचले हिस्से, हाथों और पैरों पर पड़ता है।
ऑस्टियोअर्थराइटिस आमतौर पर कार्टिलेज जॉइन्ट में होता है। कार्टिलेज हड्डियों की सतह पर मौजूद सॉफ्ट टिश्यू है, जो अर्थराइटिस के कारण पतला और खुरदरा होने लगता है।
इससे हड्डियों के सिरे पर मौजूद कुशन कम होने लगते हैं और हड्डियां एक दूसरे से रगड़ खाने लगती हैं। अर्थराइटिस के लक्षण इसके प्रकार पर निर्भर करते हैं।
इसमें दर्द, अकड़न, ऐंठन, सूजन, हिलने-डुलने या चलने-फिरने में परेशानी होने लगती है।

उनके अनुसार, अर्थराइटिस का मुख्य कारण जीवनशैली से जुड़ा है। भारतीय आबादी में खान-पान के तरीके भी इस बीमारी का कारण बन चुके हैं।
शहरी लोग आजकल कम चलते-फिरते हैं, जिससे उनकी शारीरिक एक्टिविटी का स्तर कम हो गया है।
महिलाएं कई कारणों से अर्थराइटिस का शिकार हो रही हैं, जैसे चलने-फिरने में कमी, जिसके कारण मसल कम होना आजकल आम हो गया है।
डॉ. जैन ने कहा कि अर्थराइटिस से अक्सर सबसे ज्यादा असर घुटनों, कूल्हों के जोड़ों पर पड़ता है। लगातार बैठे रहने के कारण से मांसपेशियां निष्क्रिय और कमजोर होने लगती हैं।
पेशियों के कमजोर होने से ऑर्थरिटिस का दर्द बढ़ जाता है और मांसपेशियां खराब होने लगती हैं।

उन्होंने कहा कि शारीरिक एक्टिविटी कम होने के कारण मोटापा भी बढ़ता है, जो अर्थराइटिस के मुख्य कारणों में से एक है।
अर्थराइटिस का असर मरीज के चलने-फिरने की क्षमता, रोजमर्रा के कामों पर पड़ता है। मरीज रोजाना के कामों में मुश्किल महसूस करने लगता है।
समय के साथ कम चलने के कारण उसके कार्डियो-वैस्कुलर स्वास्थ्य पर असर पड़ने लगता है और डायबिटीज की संभावना भी बढ़ जाती है।

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